नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-8

लक्षणा हताश हो जाना एवं निराश होकर उठ जाना तुम्हें शोभा नहीं देता। तुम कोई साधारण बालिका नहीं वरण शक्ति का एक अंश हो। तुम्हारा प्रफुल्लित रहना इस प्रकृति को प्रफुल्लित करेगा और तुम्हारी निराशा इस प्रकृति को घोर निराशा में डुबो देगी, इसलिए प्रकृति संतुलन के लिए तुम्हें इस बात का ख्याल रखना होगा।

सामान्य से ऊपर उठें और विशिष्ट की भूमिका निभा गुरु का ज्ञान और ईश्वर का वरदान लगभग बराबर होता है, जो एक बार प्राप्त हो जाने के बाद कभी भी विफल नहीं होते हैं, और इसके पश्चात निर्धारित लक्ष्य को पाना और भी आसान हो जाता है। लक्षणा मेरी सलाह मानो जैसा तुम्हें आचार्य चित्रसेन ने समझाना चाहा, उस बात का अनुसरण कर  तुम उनके इशारों को समझ ना पाई।

लक्षणा यदि तुम मेरी सलाह मानो तो तुम्हें गुप्ततप करना होगा। एक ऐसा तप जिसमें तपस्यारत  मनुष्य अपनी अंतर्शक्ति को तप साधना में विलीन कर देता है। वह करता तो समस्त सांसारिक कार्य है, लेकिन उसका अंतर्मन तपस्यारत बना रहता है। इसकी विधि जान पाना अत्यधिक कठिन है , इसलिए मैं तुम्हें सलाह दूंगा कि तुम कुछ समय तपस्यारत रहकर सर्वप्रथम गुप्ततप का रहस्य जानने का प्रयास करो। उसके पश्चात तुम्हारे सभी कार्य आसानी से हो जाएंगे।

लक्षणा यकीन मानो गुप्ततप करने वाले प्राणी एक विशेष आवरण में हमेशा ढका हुआ रहता है। किसी भी प्रकार कोई भी व्याधि या अन्य भारी समस्यायें मन के विकार इत्यादि कुछ भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते, और इतना कहकर कदंभ ने अपनी सकारात्मक ऊर्जा का कुछ अंश लक्षणा को प्रदान किया। लेकिन प्रचंड शक्ति की स्वामिनी लक्षणा के लिए बिना शक्ति नियंत्रित किए गुप्ततप संभव नहीं था, इसलिए वह अपने मन को नियंत्रित करने हेतु पुनः कदंभ को लेकर मंदिर की ओर निकल पड़ी और शांति पूर्वक वहीं बैठकर चिंतन करने लगी, क्योंकि मंदिर में सकारात्मक ऊर्जा का एक आवरण बना होता है जो किसी भी प्रचंड शक्ति को काबू करने के लिए पर्याप्त होता है।

ऐसा कहते हैं कि यदि घर के मंदिर में भी लगातार दीप जलाकर चंद मिनटों तक आराधना की जाए, तब भी वह अपना सुक्ष्म  स्थान घेरे हुए भी पूरे घर में एक ऐसा आवरण पैदा कर देता है, कि संपूर्ण वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। इतने दिनों में बेचैनी के बाद चंद मिनटों का सुकून पाकर लक्षणा पूर्णतः तृप्त नजर आ रही थी ,और कदंभ बराबर नजर बनाए हुए था कि रात्रि के इस प्रहर में थोड़ी सी असुरक्षा कहीं नजर ना आए, और हुआ भी वही जिसका उसे भय था।

मंदिर के बाहर थोड़ी दूरी पर धमम की आवाज के साथ कुछ आकर गिरा और अचानक तेज रोशनी के साथ चमकने लगा। कदंभ उसकी गति और चमक से समझ गया कि क्या हो सकता है, इसलिए वह जाकर लक्षणा और शक्ति के बीच जाकर खड़ा हो गया। शायद तब तक देरी हो चुकी थी। उसके गिरने की आवाज ने अचानक झटके से लक्षणा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और लक्षणा ने जैसे ही उस चमक की ओर देखा। वह सम्मोहित हो उसकी और बढ़ने लगी।

कदंभ जानता था कि वह लक्षणा की इच्छा से कहीं जा तो सकता है, लेकिन जाने से रोक नहीं सकता और रात्रि के समय नाग माता का आह्वान करना भी उचित नहीं है। उसने बहुतेरे प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा। लक्षणा जैसे नींद में चल रही हो उस और बड़े जा रही थी। कदंभ विवश होकर आसमान की ओर मुख उठाएं आचार्य चित्रसेन और गुरुवर को याद करने लगा, क्योंकि इस समय में मदद कर पाना केवल इन दोनों के लिए ही संभव था।

धीरे-धीरे वह चमकता हुआ आभामंडल अपना विकराल रूप लेने लगा, और उस मंदिर के उस तरफ का हिस्सा अपनी प्रतिरोधी शक्ति के कारण तप्त होने लगा, लेकिन इससे पहले कि लक्षणा मंदिर की दहलीज पार करती, अचानक ठहर की आवाज ने उस रोशनी को शांत कर दिया, और लक्षणा बेहोश होकर गिर पड़ी।

कदंभ आंखों में आंसू लिए आचार्य की ओर देख रहा था, और आचार्य ने देखते ही देखते अपना हाथ उस शक्ति की ओर घुमाकर उसे चूर चूर कर दिया। धड़ाम की आवाज के साथ वह शक्ति अनेकों टुकड़ों में बिखेर गई, और देखते ही और अलग ही गुरुत्वाकर्षण शक्ति से आसमान की ओर बिखरते हुए उड़ती चली गई। कदंभ ने झुककर गुरुवर उसकी पुकार सुनने के लिए को प्रणाम किया, और कोटि-कोटि धन्यवाद दिया। तब तक आचार्य चित्रसेन जी भी आ चुके थे।

मंदिर परिसर में हलचल का आभास कर और अपने सामने अचानक अपने गुरु को देख भाव पूर्ण हो अश्रु धारा बहाने लगे। इस पर गुरु ने उन दोनों को शांत करते हुए लक्षणा के ऊपर थोड़ा जल छिड़का और उसे होश में लाया। अपने समक्ष गुरुवर को देख लक्षणा अतिप्रसन्न हुई। भले ही वह आज तक गुरू श्रेष्ठ से ना मिली हो, लेकिन उनका आभामंडल कदंभ चित्रसेन और आचार्य चित्रसेन के व्यवहार से वह उनका परिचय जान चुकी थी।

गुरु श्रेष्ठ ने सर्वप्रथम आचार्य को फटकार लगाते हुए कहा कि यह कैसी रक्षात्मक प्रणाली है तुम्हारी.... मंदिर को दसों दिशाओं से पूर्ण संरक्षित होना चाहिए। किसी असुरी शक्ति का यह साहस कि वह मंदिर में बैठे हुए मनुष्यों का ध्यान आकर्षित कर ले। सुरक्षा प्रणाली की कमी को दर्शाता है। मंदिर के कोसों दूर तक एक ऐसा कवच होना चाहिए कि यदि उसके दायरे में त्रुटिवश यदि कोई हिंसक प्राणी भी आ जाए तो वह अपनी प्रवृत्ति भूले से भी हिंसा ना करे।

तब आचार्य चित्रसेन ने गुरुवर को प्रणाम कर कहा..... हे आचार्य आपके द्वारा कही गई हर बात सत्य है, और ऐसा भी नहीं कि इस मंदिर का सुरक्षा कवच इतना कमजोर है। आप खुद देखिए अपनी अंतर्दृष्टि से कि यह सब कुछ एक विशेष योजना के अनुसार हुआ था । मैं तो बैठ उसे नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा था। मैंने अपनी संपूर्ण सुरक्षा लक्षणा के घर और इस मंदिर में प्रसारित कर रखी है। फिर भी असुरी शक्ति के प्रयास के कारण ही लक्षणा ना इतनी उद्विग्न है, क्योंकि उसका रक्षा तंत्र बार-बार उसके समक्ष आने वाली नकारात्मक ऊर्जा को चुनौती दे रहा है। शायद उन्हें ज्ञात हो गया है लक्षणा की उपस्थिति और लक्ष्य का.... इसलिए वे लक्षणा को हानि पहुंचाना चाहते है।

हे गुरु श्रेष्ठ ऐसे समय में वर्तमान स्थिति में मैं इतना सामर्थ्य नहीं हूं, कि उन पराशक्तियों का सामना कर सकूं। इसलिए मैंने और कदंभ ने आज आपका आह्वान किया। तब अपनी अंतर्दृष्टि से गुरुवर ने देखा और सत्यता जान चित्रसेन को कहने लगे। चित्रसेन मुझे लगता है लक्षणा के साथ-साथ तुम्हें भी बहुत कुछ देना बाकी है। कल संध्या के वंदन के पश्चात नाग माता से अनुमति ले मंदिर का द्वार बंद मत करना। मैं कल ही लक्षणा का दीक्षांत संस्कार और विद्या की शुरुआत दोनों ही प्रारंभ करूंगा।

क्रमशः....

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2 Comments

Mohammed urooj khan

23-Oct-2023 12:37 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

23-Oct-2023 12:00 AM

Nice one

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